Opposition's Unity

विपक्ष की एकजुटता का प्रहसन

Editorial

Opposition's Unity

Opposition's Unity : भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट होने के लिए तीसरा मोर्चा बनाने की जरूरत पड़ रही है। हालांकि दूसरा मोर्चा किसका है, यह स्पष्ट नहीं है। हरियाणा के फतेहाबाद में पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत चौधरी देवीलाल की जयंती पर सम्मान दिवस रैली में एकत्रित हुए विपक्ष के नेताओं ने अपनी एकजुटता जो जाहिर कर दी लेकिन किसी दूसरे या तीसरे मोर्चे के गठन की बातों के अलावा और कुछ नहीं हो सका। इस रैली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बतौर जनता दल यू नेता पहुंचे तो राजद के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी शिरकत की। हालांकि खुद को महाराष्ट्र की सियासत तक ही समेट कर रख रहे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार ने भी रैली में पहुंचने का समय निकाला। पंजाब में आजकल सत्ता से बाहर बैठी शिरोमणि अकाली दल के पास भी काफी समय है, इसलिए अध्यक्ष सुखबीर बादल भी पहुंचे। माकपा नेताओं के पास भी आजकल ज्यादा काम नहीं है, इसलिए उन्होंने भी इस रैली में शिरकत कर ली। हालांकि जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारुक अब्दुल्ला, यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव, टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी, ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक को भी बुलाया गया था, लेकिन वे नहीं आ पाए। इनेलो सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला लंबे समय से ऐसी जुगत में हैं, जब विपक्षी दलों को एकजुट कर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा जाए। हालांकि विपक्षी दलों की एकजुटता की  इस कोशिश की फूंक तब निकल जाती है, जब चुनाव लडऩा तो दूर एकमंच पर भी वे आना पसंद नहीं करते हैं।

क्या कांग्रेस के बगैर किसी दूसरे या तीसरे मोर्चे की कवायद पूरी हो सकती है? पिछले दिनों बिहार में नीतीश कुमार भाजपा का साथ छोडकऱ राजद के साथ मिलकर सरकार बना ली है। कांग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया है। यह इन विपक्षी दलों को उत्साहित करने वाली बात है, लेकिन वास्तव में कांग्रेस कभी अपनी उस सर्वोच्चता जोकि वह विपक्षी दलों पर रखती है, को छोडऩे को तैयार नहीं है। कांग्रेस खुद को राष्ट्रीय पार्टी बताते हुए मुख्य विपक्षी दल करार देती है। यही वजह है कि जब पश्चिम बंगाल से चलकर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली में सोनिया गांधी से मिलती हैं तो तब उन्हें कोई साफ समर्थन मिलता नहीं दिखता। वहीं अब जब नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव एक साथ सोनिया गांधी से विपक्षी मोर्चा बनाने की कवायद को लेकर मिलते हैं, तब भी उन्हें चाय-पानी पिलाकर वापस भेज दिया जाता है। ऐसे में इन विपक्षी नेताओं की एकजुटता पर खुद सवाल उठ जाते हैं। हरियाणा में इनेलो ने सभी विपक्षी नेताओं को बुलाया, लेकिन आम आदमी पार्टी को आमंत्रित नहीं किया गया, क्या वह विपक्ष नहीं है। आम आदमी पार्टी को नहीं बुलाए जाने की वजह साफ है, क्योंकि हरियाणा में वह इनेलो की जगह ले चुकी है, वहीं अब भाजपा, कांग्रेस और जजपा के बाद आप का नाम सामने आ रहा है।

फतेहाबाद रैली का सबब यही है कि इनेलो ने हरियाणा और देश की सियासत में पुनर्जीवित करने की कोशिश को जारी रखा है। भर्ती घोटाले में जेल काट चुके ओपी चौटाला अगर अब भी इसकी उम्मीद रखते हैं कि हरियाणा में इनेलो की फिर सरकार बनेगी तो यह उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का चरम है। इस समय पार्टी का महज एक विधायक है, पार्टी के ज्यादातर वरिष्ठ नेता दूसरी पार्टियों में अपनी जगह ले चुके हैं। नए लोग पार्टी से जुड़ नहीं रहे, गोहाना उपचुनाव के समय भी ओपी चौटाला बस में सवार होकर प्रचार करते थे और जनता से अपनी चिरपरिचित शैली में संवाद करते थे। लेकिन इनेलो उम्मीदवार की यहां जमानत जब्त हो गई थी। अब जब आदमपुर उपचुनाव की रणभेरी बजने का इंतजार हो रहा है तो इनेलो की चाहत यहां भी चुनाव लडऩे की होगी। देश में विपक्षी एकता की दुंदुभी बजा रहे ओपी चौटाला क्या हरियाणा में विपक्ष को एकजुट कर सकते हैं? क्या आदमपुर उपचुनाव में वे यह कह सकते हैं कि इनेलो, कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देगी या फिर कांग्रेस को इसके लिए तैयार कर सकते हैं कि वह इनेलो उम्मीदवार को समर्थन दे। सम्मान दिवस रैली में विपक्ष के नेताओं ने ओपी चौटाला को ही इसकी जिम्मेदारी सौंपी है कि वे कांग्रेस से इसके लिए बात करें कि वह तीसरे मोर्चे के लिए तैयार हो। हालांकि कांग्रेस के नेताओं की ओर से ऐसी किसी मुलाकात के लिए भी समय निकाला जाएगा, उसमें बहुत संशय है। हरियाणा में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा दो कार्यकाल से अपनी सरकार बनने का इंतजार कर रहे हैं। बीते विधानसभा  चुनाव में उनका आतंरिक टकराव था, इस वजह से वे अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिलवा सके और इससे गलत संदेश भी गया। लेकिन अगले चुनाव में वे पुरजोर तरीके से गठबंधन सरकार के खिलाफ चुनाव में उतरे नजर आ सकते हैं। तब उन्हें सच में तीसरे मोर्चे टाइप किसी गठबंधन की जरूरत पड़ेगी, इसमें भी बहुत किंतु-परंतु हैं।

तीसरे मोर्चे की कवायद हर चुनाव से पहले बनती रही हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले तमाम विपक्षी दलों को कनार्टक में एक मंच पर देखा गया था, लेकिन जब चुनाव में उतरने की बारी आई तो हर कोई अलग हो गया। तब क्या यह मान लिया जाए कि दिल बहलाने और केंद्र एवं हरियाणा की गठबंधन सरकार के समक्ष खुद की फर्जी एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए ऐसी कवायदें जारी रहने वाली हैं। संभव है, यह कहावत ऐसे ही समय के लिए है कि न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी। न कांग्रेस समेत विपक्षी दलों में कोई एकजुटता आएगी और न ही उनके मंसूबे पूरे होंगे। बिहार में भी नीतीश कुमार ने राजद के खिलाफ चुनाव लड़ा था और सत्ता के लिए वे एक हो गए हैं, क्या बिहार की जनता इसे स्वीकार करेगी। यह नौटंकी बिहार के वर्तमान और भविष्य को बर्बाद कर रही है, क्या इस पर उसकी नजर नहीं रहेगी। अगर ऐसे गठबंधन देश के केंद्र में बन जाएंगे तो देश क्या वह रफ्तार कायम रख पाएगा, जिस गति से वह इस समय दौड़ रहा है। इस समय नए मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है, जोकि देश के और अपने भविष्य को जोडकऱ चल रहा है। बावजूद इसके विपक्ष को इसका अधिकार है कि वह एकमंच पर आए और जन समर्थन कायम करे, यह एक श्रेष्ठ लोकतंत्र के लिए आवश्यक भी है। भविष्य की राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।